मधुमेह के कारण नासूर, महुआ और औषधीय चावल का प्रयोग इसे करे दूर

मधुमेह (डायबीटीज) पर पंकज अवधिया का साप्ताहिक स्तम्भ

बुधवार 04 जुलाई, 2018

मधुमेह के कारण नासूर, महुआ और औषधीय चावल का प्रयोग इसे करे दूर

कुछ वर्षों पूर्व मुझे राजकोट बुलवाया गया मधुमेह से प्रभावित एक व्यक्ति को देखने के लिए।

मुझे खाली हाथ आया देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।

वे सोच रहे थे कि मैं बहुत सारी जड़ी-बूटियां लेकर आऊंगा और उनकी चिकित्सा में मदद करूँगा।

मैंने उनसे कहा कि आप एक डॉक्टर से ऐसी उम्मीद कर सकते हैं पर एक शोधकर्ता से ऐसी उम्मीद करना बेमानी होगा।

मधुमेह के कारण उनको जो फोड़ा हुआ था वह नासूर (Diabetic Carbuncle) बन चुका था और किसी भी तरह से ठीक नहीं हो रहा था।

मधुमेह पर मेरे शोध कार्य को देख कर उन्होंने मुझे परामर्श के लिए राजकोट आमंत्रित किया था।

उन्होंने बताया कि वे सिंथेटिक इंसुलिन ले रहे हैं और साथ में 10 प्रकार के रसों का नियमित सेवन कर रहे हैं।

इनमें करेले का रस, लौकी का रस, एलोवेरा का रस, गिलोय का रस, नीम का रस और गेहूं के जवारे का रस शामिल था।

इसके अलावा भी बहुत सी घरेलू औषधियां वे ले रहे थे और हाल ही में उन्होंने एक वैद्य से भी दवा लेनी शुरू की थी।

ये सारी मशक्कत मधुमेह पर नियंत्रण रखने के लिए थी।

पर अभी मधुमेह से ज्यादा नासूर को लेकर परेशान थे और जब तरह-तरह के उपाय आजमाने के बाद भी इससे मुक्ति नहीं मिली तब उन्होंने मुझे बुलवाया।

मैंने कुछ आरंभिक परीक्षण किए और विस्तार से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली और उसके बाद फिर उन्हें सलाह देने की इजाजत मांगी।

नासूर पैर में था और उसमें इतना अधिक तेज दर्द और जलन थी कि उन्हें पूरे समय बिस्तर पर रहना पड़ता था।

मैंने उन्हें कहा कि वे पहले हफ्ते नीम के रस का सेवन पूरी तरह से बंद कर दें।

मैंने और कोई सलाह नहीं दी और मैं वापस आ गया।

एक हफ्ते बाद मुझे बताया गया है कि सुधार के लक्षण दिख रहे हैं।

इस पर मैंने उन्हें सलाह दी कि अब वे करेले के रस का सेवन भी बंद कर दें।

उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन फिर भी उन्होंने मेरी बात मानी।

अगले हफ्ते उनका फोन आया कि नासूर से जलन गायब हो गई है।

यह अच्छा लक्षण था।

मैंने उन्हें सलाह दी कि अब वे गेहूं के जवारे के रस का सेवन भी बंद कर दें।

उन्होंने ऐसा ही किया।

चौथे हफ्ते मुझे फिर से राजकोट आमंत्रित किया गया।

अब तक उनका नासूर ठीक होने की राह पर था और वे अब चल फिर पा रहे थे।

यह देख कर मुझे बहुत खुशी हुई।

इस बार मैं अपने साथ पुराने महुए के वृक्ष की कोटर से एकत्र किया हुआ मानसून की प्रथम वर्षा का जल और एक विशेष प्रकार का औषधीय चावल लेकर गया था।

मैंने उन्हें सलाह दी कि वे इस चावल को पकाकर इसमें विशेष जल मिलाकर 7 दिनों तक सेवन करें और उसके बाद फिर मुझे फोन करें।

उन्होंने ऐसा ही किया।

फोन आने पर मैंने उन्हें प्रयोग जारी रखने को कहा।

1 महीने के अंदर उन्हें इस कष्टकारी समस्या से आराम मिल गया।

©  पंकज अवधिया सर्वाधिकार सुरक्षित

परामर्श के लिए समय लेने के लिए ई मेल pankajoudhia@gmail.com

सम्बन्धित वीडियो

https://youtu.be/VFajUL6YdII

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