इसलिए कारगर नही सिद्ध हो रहा था मधुमेह को जड़ से खत्म करने वाला फार्मूला

मधुमेह (डायबीटीज) पर पंकज अवधिया का साप्ताहिक स्तम्भ

बुधवार 08 अगस्त, 2018

इसलिए कारगर नही सिद्ध हो रहा था मधुमेह को जड़ से खत्म करने वाला फार्मूला

कुछ वर्षों पहले मध्य भारत के एक प्रोफेसर ने मुझसे परामर्श के लिए 10 घंटों का समय लिया।

नियत समय पर वे अपने शिष्यों के साथ मुझसे मिलने आ गए।

उन्होंने बताया कि सालों की मेहनत के बाद उन्होंने मधुमेह के लिए एक फार्मूला विकसित किया है जिसमें 200 से अधिक प्रकार की जड़ी बूटियां प्रयोग की गई है।

उनका दावा था कि इससे मधुमेह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

वे इस फार्मूले को पेटेंट कराने से पहले मुझसे चर्चा करना चाहते थे और उसके दोषों को दूर करने के उपाय की जानकारी लेना चाहते थे।

परामर्श के दौरान उन्होंने 8 घंटो तक अपने इस फार्मूले के बारे में विस्तार से बताया और यह भी बताया कि कैसे इसे तैयार किया गया।

मैंने उनकी बात ध्यान से सुनी और फिर उनसे पूछा कि क्या वाकई यह आपका फार्मूला है?

उन्होंने पूरे आत्मविश्वास से कहा कि हां यह उनके द्वारा ही विकसित किया गया फार्मूला है।

मैंने खुलासा किया कि झारखंड के एक प्रसिद्ध पारंपरिक चिकित्सक इस फार्मूले का प्रयोग पीढ़ियों से कर रहे हैं और यही कारण है कि वे मधुमेह की चिकित्सा में पारंगत माने जाते हैं।

इससे मिलते-जुलते फार्मूले छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में भी मिलते हैं।

उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ और फिर काफी देर की चुप्पी के बाद उन्होंने जवाब दिया कि उन्होंने मूल रूप से यह फार्मूला झारखंड के पारंपरिक चिकित्सक से ही प्राप्त किया है।

मैंने उनसे पूछा कि क्या इस फार्मूले से होने वाले लाभ में पारंपरिक चिकित्सक का भी कोई हिस्सा रहेगा तो वे बगले झांकने लगे।

उन्होंने बताया कि उन्होंने पैसे देकर यह फार्मूला लिया है इसलिए फार्मूले से होने वाले लाभ में पारंपरिक चिकित्सक का हिस्सा नहीं रहेगा।

यह नियमों के खिलाफ है पर इसमें पारंपरिक चिकित्सक को कोई आपत्ति नहीं है ऐसा उन्होंने दावा किया।

उन्होंने बताया कि पारंपरिक चिकित्सक जब इस फार्मूले को तैयार करते हैं तो मधुमेह में सही मायने में लाभ होता है पर जब इस फार्मूले को लैब में तैयार किया जाता है तब उतना अधिक लाभ नहीं होता है।

वे मुझसे यह जानना चाहते थे कि कैसे इस फार्मूले को वैसे ही कारगर बनाया जाए जैसा कि पारंपरिक चिकित्सक का फार्मूला काम करता है।

मैंने उनसे कहा कि पारंपरिक चिकित्सक बड़ी मेहनत से कम से कम 2 वर्ष की अवधि में कड़े शोधन के बाद इस फार्मूले को तैयार करते हैं।

आपने लैब में इसे 3 महीने में ही तैयार कर लिया इसीलिए यह फार्मूला इतने अच्छे से काम नहीं कर रहा है।

मैंने उन्हें अग्नि कंद का उदाहरण दिया।

यह अग्नि कन्द फार्मूले में मुख्य घटक के रूप में प्रयोग किया जाता है।

इसे शोधित करने में 1 वर्ष का लंबा समय लगता है और उसके बाद कई परीक्षणों से उसके प्रभाव की जांच की जाती है।

उसके बाद ही इसे फार्मूले में शामिल किया जाता है।

प्रोफेसर का कहना था कि इतनी लंबी अवधि तक शोधन करने से पूरा बजट बिगड़ जाएगा और यह फार्मूला बेहद महंगा हो जाएगा।

उन्होंने शॉर्टकट की बात कही।

मैंने कहा कि प्राचीन फार्मूले केवल इसी लिए कारगर होते हैं क्योंकि उन्हें बड़ी मेहनत से पीढ़ियों के अनुभवों से तैयार किया जाता है।

इसमें किसी भी तरह का शॉर्टकट काम नहीं आता।

मेरी बात सुनकर उन्होंने निश्चय किया कि वे पूरी तरह से शोधन करने के बाद ही अग्नि कंद का प्रयोग अपने फार्मूले में करेंगे।

मैंने उनके फार्मूले में 10 ऐसी वनस्पतियों की पहचान की जिन्हें वे बाजार से खरीद रहे थे जबकि पारंपरिक चिकित्सक इन वनस्पतियों को घने जंगलों से एकत्र करते हैं और शोधन के बाद फिर उसका इस्तेमाल करते हैं।

बाजार से खरीदी गई वनस्पतियां प्रभावी नहीं होती हैं इसीलिए उनका फार्मूला सही ढंग से काम नहीं कर रहा था।

मैंने उन्हें बताया कि श्वास रोगों से प्रभावित लोगों को इस फार्मूले का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

फेफड़े के कैंसर के रोगियों को तो भूलकर भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

साथ ही किडनी रोगों से प्रभावित लोगों को इसका प्रयोग दक्ष पारंपरिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में करना चाहिए।

उन्हें अपने फार्मूले के इतने सारे दोषों को जानकर बड़ी निराशा हुई।

मैंने उन्हें बहुत सारे उपाय बताएं जिससे कि फार्मूले के दोषों को दूर किया जा सके।

इस तरह नए फार्मूले को तैयार करने में उन्हें कम से कम 3 वर्षों का समय लग सकता था।

प्रोफेसर इसके लिए तैयार हो गए और फिर से मधुमेह के संपूर्ण उपचार के लिए फॉर्मूले के विकास में जुट गए।

©  पंकज अवधिया सर्वाधिकार सुरक्षित

परामर्श के लिए समय लेने के लिए ई मेल pankajoudhia@gmail.com

सम्बन्धित वीडियो

https://youtu.be/dUEU0GyGtbE

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